डायबिटीज

डायबिटीज क्या है? (मधुमेह का परिचय)

डायबिटीज एक चयापचय विकार है जिसमें शरीर इंसुलिन का उत्पादन सही तरीके से नहीं कर पाता है, जिससे रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। आयुर्वेद में इसे प्रमेह के नाम से जाना जाता है, और यह मुख्यतः कफ दोष और पित्त दोष के असंतुलन के कारण होता है। प्रमेह के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिसमें मधुमेह एक प्रमुख प्रकार है।

“आयुर्वेद के अनुसार डायबिटीज का प्रबंधन”

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से मधुमेह का इलाज करने के लिए शरीर को संतुलित रखना, आहार और जीवनशैली में सुधार, और आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का प्रयोग करना शामिल है। आइए देखते हैं कि आयुर्वेद कैसे डायबिटीज का प्रभावी प्रबंधन कर सकता है:

  • आहार – आयुर्वेद में भोजन का महत्वपूर्ण स्थान है। मधुमेह रोगियों को ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जो शर्करा स्तर को नियंत्रित करें और पाचन शक्ति को मजबूत करें।
  • कड़वे खाद्य पदार्थ जैसे करेला, नीम, जामुन और मेथी रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
  • फाइबर-युक्त भोजन: ज्वार, बाजरा, और ओट्स जैसे फाइबर युक्त अनाज शरीर को लंबे समय तक संतृप्त रखते हैं और शर्करा को धीरे-धीरे बढ़ने में मदद करते हैं।
  • फलों का चयन: जामुन, आंवला और अमरूद जैसे फलों का सेवन किया जा सकता है जो रक्त शर्करा स्तर को स्थिर रखते हैं।
  • दिनचर्या और योग (Daily Routine & Yoga)- आयुर्वेद में दिनचर्या का पालन करना महत्वपूर्ण माना गया है। एक स्वस्थ दिनचर्या के माध्यम से आप शरीर की ऊर्जा को संतुलित रख सकते हैं।
  • योग और प्राणायाम: मधुमेह के प्रबंधन में योग और प्राणायाम का बड़ा योगदान है।
  • कपालभाति, अनुलोम-विलोम, और मंडूकासन जैसे योगासन रक्त शर्करा को नियंत्रित रखने में सहायक हैं।
  • व्यायाम: हल्की-फुल्की सैर, ध्यान और तनाव प्रबंधन मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी हैं।

डायबिटीज के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

आयुर्वेद में कई प्रकार की जड़ी-बूटियां हैं जो मधुमेह के प्रबंधन में सहायक मानी जाती हैं:

  • करेला (Bitter Gourd): करेले में मौजूद करेलिन और मोमर्दिक नामक तत्व रक्त में शर्करा का स्तर घटाने में सहायक होते हैं।
  • जामुन (Black Plum): जामुन के बीज में जाम्बोलीन और जैम्बोसिन जैसे तत्व होते हैं, जो शर्करा का उत्पादन और अवशोषण नियंत्रित करते हैं।
  • मेथी (Fenugreek)- मेथी के बीज फाइबर से भरपूर होते हैं, जो रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
  • नीम (Neem): नीम की पत्तियां रक्त को शुद्ध करती हैं और शर्करा स्तर को नियंत्रित रखने में मदद करती हैं।

आयुर्वेदिक पंचकर्म: शरीर की सफाई-

आयुर्वेद में पंचकर्म का विशेष महत्व है, जो शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करने का काम करता है। मधुमेह के प्रबंधन में पंचकर्म का उपयोग शरीर के संतुलन को पुनः स्थापित करने में सहायक होता है। इसमें शामिल हैं:

  • वमन (Vamana): शरीर से कफ दोष को निकालने में मदद करता है।
  • विरेचन (Virechana): पित्त दोष को संतुलित करता है और रक्त शुद्धि में सहायक होता है।
  • बस्ती (Basti): विशेष प्रकार के औषधीय एनिमा के माध्यम से शरीर के विषाक्त पदार्थों को निकालता है।

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तनाव प्रबंधन और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान-

तनाव मधुमेह का एक बड़ा कारण हो सकता है। आयुर्वेद में सत्त्ववजया चिकित्सा नामक एक विधि है, जो मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देती है। इसमें ध्यान, प्राणायाम और हर्बल उपचार शामिल हैं, जो मानसिक शांति प्रदान करते हैं और तनाव को नियंत्रित रखते हैं।

नियमित स्वास्थ्य परीक्षण और आयुर्वेदिक परामर्श-

मधुमेह के प्रभावी प्रबंधन के लिए नियमित स्वास्थ्य परीक्षण आवश्यक है। आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श से व्यक्ति को सही आहार, दिनचर्या, और जड़ी-बूटियों का सेवन करने में सहायता मिलती है। इससे मधुमेह के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष

डायबिटीज के प्रबंधन के लिए आयुर्वेदिक दृष्टिकोण न केवल सुरक्षित और प्राकृतिक है, बल्कि यह जीवनशैली में सुधार, मानसिक शांति, और शरीर में संतुलन भी लाता है। आयुर्वेद के इन उपायों को अपनाकर, आप अपने जीवन को मधुमेह के प्रभाव से मुक्त बना सकते हैं। हालांकि, किसी भी आयुर्वेदिक उपचार को अपनाने से पहले विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें।

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He is an Ayurveda practitioner with a Master’s degree (Shalya Tantra – Surgery) from Gujarat Ayurveda University, Jamnagar. He also holds a Bachelor’s degree from Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Rajasthan Ayurved University, Jodhpur. In essence, Dr. Poona Nath Chouhan is a practicing Ayurveda specializing in Shalya Tantra, actively involved in research, education, and consultation within the field of Ayurveda. He had presneted is works in various national and international confrences. He is published more than 20+ research paper indexed in Scopus/Web of sceince, Pubmed and UGC care journals.

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